Quran Para 1 Alif Laam Meem तक़वा, ग़ैब पर ईमान, नमाज़ और इनफ़ाक़ के अहकाम बताता है। इसमें मुनाफ़िक़ों की अलामतें और मिसालें, आदम अलैहिस्सलाम की नियुक्ति, भूल और तौबा का बयान मिलता है। बनी-इस्राईल के अहद, उनकी नाफ़रमानी और अंजाम का ज़िक्र है। साथ ही दीन-इब्राहीम की तौहीद, किताब की हिदायत और सब्र व शुक्र की अहमियत को उजागर किया गया है।
Guidance in Quran Para 1 Alif Laam Meem
Quran Para 1 Alif Laam Meem इंसान को सीधा रास्ता अपनाने और ईमान के साथ नेक अमल करने की दावत देता है। इसमें मोमिनों के गुण, काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों की पहचान, आदम अलैहिस्सलाम और बनी-इस्राईल के तजुर्बों का बयान है। यह पारा बताता है कि अल्लाह की किताब ही असल हिदायत है और उसी से सब्र, शुक्र और तौहीद की राह मिलती है।
सूरह अल-फ़ातिहा (Surah Al-Fatiha)
सूरह अल-फ़ातिहा (Surah Al-Fatiha) कुरआन की मक्की सूरत है जिसमें कुल 7 आयतें हैं; इसे “उम्मुल-किताब” यानी कुरआन की माँ कहा जाता है, क्योंकि इसमें अल्लाह की तारीफ़, उसकी रहमत, इंसाफ के दिन का ज़िक्र और सीधी राह पर चलने की दुआ शामिल है
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
सब तरह की तारीफ अल्लाह ही के लिए है जो तमाम मखलूकात का परवरदिगार है। बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला इंसाफ के दिन का हाकिम। ऐ परवरदिगार हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझ ही से मदद मांगते हैं। हमको सीधे रास्ते चला—उन लोगों के रस्ते जिन पर तू अपना फजल करम करता रहा, ना उनके जिन पर गुस्से होता रहा और ना गुमराहों के। आमीन।
सूरह अल-बक़रह (Surah Al-Baqarah)
सूरह अल-बक़रह (Surah Al-Baqarah) की आरंभिक आयतें एक मदनी सूरत का हिस्सा हैं, जिसमें ईमान, नमाज़, ज़कात, परहेज़गारी, काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों की पहचान तथा इंसान की हिदायत के अहकाम बताए गए हैं, और यही सूरत आगे चलकर आयत-उल-कुर्सी जैसी सबसे ताक़तवर आयत भी समेटे हुए है।
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
अलिफ लाम मीम। ये किताब यानी कुरान मजीद—इसमें कुछ शक नहीं कि अल्लाह का कलाम है—परहेजगारों के लिए रहनुमा है। जो गैब पर ईमान लाते और आदाब के साथ नमाज पढ़ते, और जो कुछ हमने उनको अता फरमाया है उसमें से खर्च करते हैं। और जो किताब ए पैगंबर तुम पर नाजिल हुई और जो किताबें तुमसे पहले पैगंबरों पर नाजिल हुई—सब पर ईमान लाते—और आखिरत का यकीन रखते हैं। यही लोग अपने परवरदिगार की तरफ से आई हुई हिदायत पर हैं और यही लोग कामयाब हैं।
जो लोग काफिर हैं—उन्हें तुम नसीहत करो या ना करो—उनके लिए बराबर है; वो ईमान नहीं लाने के। अल्लाह ने उनके दिलों और कानों पर मोहर लगा रखी है और उनकी आंखों पर पर्दा पड़ा हुआ है और उनके लिए बड़ा अज़ाब तैयार है। और बाज लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि हम अल्लाह पर और रोज़-ए-आखिर पर ईमान रखते हैं, हालांकि वो ईमान नहीं रखते। ये अपने ख्याल में अल्लाह को और मोमिनों को धोखा देते हैं, मगर हकीकत में अपने सिवा किसी को धोखा नहीं देते और इससे बेखबर हैं। इनके दिलों में कुफ्र का मर्ज़ था, अल्लाह ने उनका मर्ज़ और ज्यादा कर दिया और उनके झूठ बोलने के सबब उनको दुख देने वाला अज़ाब होगा।
और जब इनसे कहा जाता है कि जमीन में फसाद ना डालो, तो कहते हैं कि हम तो इस्लाह करने वाले हैं। देखो, ये बिलाशुब्हा मुफसिद हैं लेकिन खबर नहीं रखते। और जब इनसे कहा जाता है कि जिस तरह और लोग ईमान ले आए—तुम भी ईमान ले आओ—तो कहते हैं: भला जिस तरह बेवकूफ ईमान ले आए हैं उसी तरह हम भी ईमान ले आएं? सुन लो, कि यही बेवकूफ हैं लेकिन नहीं जानते।
यह लोग जब मोमिनों से मिलते हैं तो कहते हैं कि हम ईमान ले आए हैं। और जब अपने शैतानों में जाते हैं तो उनसे कहते हैं कि हम तुम्हारे साथ हैं और मुसलमानों से तो हम हंसी किया करते हैं। इन मुनाफिकों से अल्लाह हंसी करता है और उन्हें मोहलत दी जाती है कि शरारत और सरकशी में पड़े बहक रहे हैं। ये वो लोग हैं जिन्होंने हिदायत छोड़कर गुमराही खरीदी, तो ना तो इनकी तिजारत ने कुछ नफा दिया और ना ये हिदायतयाब हुए।
इनकी मिसाल उस शख्स की सी है जिसने शबे-तारीक में आग जलाई; जब आग ने उसके इर्द-गिर्द की चीजें रोशन कर दीं तो अल्लाह ने उनकी रोशनी ज़ाइल कर दी और उनको अंधेरों में छोड़ दिया कि कुछ नहीं देखते। ये बहरे हैं, गूंगे हैं, अंधे हैं कि किसी तरह सीधे रास्ते की तरफ लौट ही नहीं सकते। या इनकी मिसाल उस बारिश जैसी है कि आसमान से बरस रही हो और उसमें अंधेरे पर अंधेरा छा रहा हो और बादल गरज रहा हो और बिजली कड़क रही हो; तो ये कड़क से डरकर मौत के खौफ से कानों में उंगलियां दे लेते हैं और अल्लाह काफिरों को हर तरफ से घेरे हुए है। करीब है कि बिजली की चमक इनकी आंखों की बसारत को उड़ा ले जाए; जब बिजली चमकती है और उन पर रोशनी डालती है तो उसमें चल पड़ते हैं और जब अंधेरा हो जाता है तो खड़े के खड़े रह जाते हैं। और अगर अल्लाह चाहता तो इनके कानों की सुनवाई और आंखों की बेनाई—दोनों—को ज़ाइल कर देता। बلاشुब्हा, अल्लाह हर चीज़ पर कादिर है।
लोगों! अपने परवरदिगार की इबादत करो जिसने तुमको और तुमसे पहले लोगों को पैदा किया ताकि तुम उसके अज़ाब से बचो। जिसने तुम्हारे लिए जमीन को बिछौना और आसमान को छत बनाया और आसमान से मेह बरसाकर तुम्हारे खाने के लिए तरह-तरह के मेवे पैदा किए—बस किसी को अल्लाह का हमसर ना बनाओ, और तुम जानते तो हो।
और अगर तुमको इस किताब में—जो हमने अपने बंदे पर नाजिल फरमाई है—कुछ शक हो, तो इसी तरह की एक सूरत तुम भी बना लाओ, और अल्लाह के सिवा जो तुम्हारे मददगार हों उनको भी बुला लो—अगर तुम सच्चे हो। फिर अगर ऐसा ना कर सको—और हरगिज़ नहीं कर सकोगे—तो उस आग से डरो जिसका ईंधन आदमी और पत्थर होंगे और जो काफिरों के लिए तैयार की गई है।
और जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे—उनको खुशखबरी सुना दो कि उनके लिए नेमत के बाग हैं जिनके नीचे नहरें बह रही हैं। जब उन्हें उनमें से किसी किस्म का मेवा खाने को दिया जाएगा तो कहेंगे: यह तो वही है जो हमको पहले दिया गया था; और उन्हें एक-दूसरे के हमशक्ल मेवे दिए जाएंगे। और वहां उनके लिए पाक बीवियां होंगी और वो बहिश्तों में हमेशा रहेंगे।
अल्लाह इस बात से हया नहीं करता कि मच्छर या इससे बढ़कर किसी चीज़—मसलन मक्खी, मकड़ी वगैरह—की मिसाल बयान फरमाए। अब जो मोमिन हैं, वो यकीन करते हैं कि वह उनके परवरदिगार की तरफ से सच है; और जो काफिर हैं वो कहते हैं: इस मिसाल से अल्लाह की मुराद ही क्या है? इससे अल्लाह बहुतों को गुमराह करता है और बहुतों को हिदायत बख्शता है—और गुमराह भी करता है तो नाफरमानों ही को—जो अल्लाह के इकरार को मजबूत करने के बाद तोड़ देते हैं और जिस चीज़—यानी रिश्ता-ए-क़राबत—को जोड़े रखने का अल्लाह ने हुक्म दिया है, उसको काट डालते हैं और जमीन में खराबी करते हैं। यही लोग नुकसान उठाने वाले हैं।
काफिरो! तुम अल्लाह से किस तरह मुनकिर हो सकते हो—जिस हाल में कि तुम बेजान थे, तो उसने तुमको जान बख्शी; फिर वही तुमको मारता है; फिर वही तुमको जिंदा करेगा; फिर तुम उसी की तरफ लौटाए जाओगे। वही तो है जिसने सब चीजें जो जमीन में हैं तुम्हारे लिए पैदा कीं; फिर आसमानों की तरफ मुतवज्जेह हुआ, तो उनको ठीक-ठीक सात आसमान बना दिया और वह हर चीज़ से खबरदार है।
और वो वक्त याद करने के काबिल है जब तुम्हारे परवरदिगार ने फरिश्तों से फरमाया: मैं जमीन में अपना नायब बनाने वाला हूं। उन्होंने कहा: क्या तू उसमें ऐसे शख्स को नायब बनाना चाहता है जो खराबियां करे और खून करे, और हम तेरी तारीफ के साथ तसब्बीह और तकदीस करते रहते हैं? फरमाया: मैं वो बातें जानता हूं जो तुम नहीं जानते।
और उसने आदम को सब चीज़ों के नाम सिखाए; फिर उनको फरिश्तों के सामने किया और फरमाया: अगर सच्चे हो तो मुझे इनके नाम बताओ। उन्होंने कहा: तू पाक है, जितना इल्म तूने हमें बख्शा है उसके सिवा हमें कुछ मालूम नहीं; बेशक तू दाना है, हिकमत वाला है। तब अल्लाह ने आदम से कहा: आदम! तुम इनको इन चीज़ों के नाम बताओ। सो जब उन्होंने उनको उनके नाम बताए, तो फरिश्तों से फरमाया: क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि मैं आसमानों और जमीन की सब पोशीदा बातें जानता हूं और जो तुम जाहिर करते हो और जो पोशीदा करते हो—सब मुझको मालूम है।
और जब हमने फरिश्तों को हुक्म दिया कि आदम के आगे सज्दा करो, तो वो सब सजदे में गिर पड़े, मगर शैतान ने इंकार किया और गुरूर में आकर काफिर बन गया। और हमने कहा: ऐ आदम! तुम और तुम्हारी बीवी बहिश्त में रहो और जहां से चाहो बेरोकटोक खाओ-पियो, लेकिन इस दरख्त के पास ना जाना, नहीं तो जालिमों में हो जाओगे। फिर शैतान ने दोनों को उस दरख्त के बारे में फुसलाया और जिस ऐशो-निशात में थे उससे उनको निकलवा दिया। तब हमने हुक्म दिया कि बहिश्त-ए-बरी से चले जाओ—तुम एक-दूसरे के दुश्मन हो—और तुम्हारे लिए जमीन में एक वक्त का ठिकाना और मआश मुकर्रर कर दिया गया है। फिर आदम ने अपने परवरदिगार से कुछ कलिमात सीखे और माफी मांगी—तो उसने उनका कसूर माफ़ कर दिया। बेशक वह माफ़ करने वाला है, बड़ा मेहरबान है।
हमने फरमाया: तुम सब यहां से उतर जाओ। जब तुम्हारे पास मेरी तरफ से हिदायत पहुंचे, तो उसकी पैरवी करना; जिन लोगों ने मेरी हिदायत की पैरवी की, उनको ना कुछ खौफ होगा और ना वो ग़मनाक होंगे। और जिन्होंने उसको कबूल ना किया और हमारी आयतों को झुठलाया—वो दोजख में जाने वाले हैं और वो हमेशा उसमें रहेंगे।
ऐ आल-ए-याकूब! मेरे वो एहसान याद करो जो मैंने तुम पर किए थे और उस इकरार को पूरा करो जो तुमने मुझसे किया था; मैं उस इकरार को पूरा करूंगा जो मैंने तुमसे किया था, और मुझ से डरते रहो। और जो किताब मैंने अपने रसूल मुहम्मद ﷺ पर नाजिल की है—जो तुम्हारी किताब यानी तौरात को सच्चा कहती है—उस पर ईमान लाओ और उससे मुंह फेरने वाले पहले न बनो, और मेरी आयतों में तहरीफ करके उनके बदले थोड़ी-सी कीमत—यानी दुनियावी मुनाफ़त—ना हासिल करो और मुझ से खौफ रखो। और हक को बातिल के साथ ना मिलाओ और सच्ची बात को जानबूझकर ना छुपाओ। और नमाज पढ़ा करो और जकात दिया करो और अल्लाह के आगे झुकने वालों के साथ झुका करो।
ये क्या अक्ल की बात है कि तुम लोगों को नेकी करने को कहते हो और अपने को फरामोश किए देते हो—हालांकि तुम अल्लाह की किताब भी पढ़ते हो। क्या तुम समझते नहीं? और रंज-ओ-तकलीफ में सब्र और नमाज से मदद लिया करो; और बेशक नमाज गराँ है—मगर उन लोगों पर गराँ नहीं जो आजिज़ी करने वाले हैं—जो यकीन किए हुए हैं कि वे अपने परवरदिगार से मिलने वाले हैं और उसकी तरफ लौट कर जाने वाले हैं।
ऐ याकूब की औलाद! मेरे वो एहसान याद करो जो मैंने तुम पर किए थे और ये कि मैंने तुमको जहान के लोगों पर फज़ीलत बख्शी थी। और उस दिन से डरो जब कोई किसी के कुछ भी काम ना आए, और ना किसी की सिफारिश मंजूर की जाए, और ना किसी से किसी तरह का बदला कुबूल किया जाए, और ना लोग किसी और तरह मदद हासिल कर सकें।
और हमारे उन एहसानात को याद करो जब हमने तुमको कौमे फिरऔन से नजात बख्शी—वो लोग तुमको बड़ा दुख देते थे—तुम्हारे बेटों को तो कत्ल कर डालते थे और बेटियों को जिंदा रहने देते थे—और उसमें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से बड़ी सख्त आजमाइश थी। और जब हमने तुम्हारे लिए समंदर को फाड़ दिया—फिर तुमको तो नजात दी और फिरऔन की कौम को ग़र्क कर दिया—और तुम देख रहे थे।
और जब हमने मूसा से चालीस रात का वादा किया, तो तुमने उनके पीछे बछड़े को माबूद मुकर्रर कर लिया और तुम जुल्म कर रहे थे; फिर उसके बाद हमने तुमको माफ कर दिया ताकि तुम शुक्र करो। और जब हमने मूसा को किताब और मौजिजे इनायत किए ताकि तुम हिदायत हासिल करो।
और जब मूसा ने अपनी कौम के लोगों से कहा: भाइयों! तुमने बछड़े को माबूद ठहराने में अपनी जानों पर जुल्म किया है—तो अपने पैदा करने वाले के आगे तौबा करो, फिर अपनों को कत्ल करो—तुम्हारे खालिक के नजदीक तुम्हारे हक में यही बेहतर है—फिर उसने तुम्हारा कसूर माफ़ कर दिया; वो बेशक बड़ा माफ करने वाला है, बड़ा मेहरबान है।
और जब तुमने मूसा से कहा: मूसा! जब तक हम अल्लाह को सामने ना देख लेंगे, तुम पर ईमान नहीं लाएंगे—तो तुम्हें बिजली ने आ घेरा और तुम देख रहे थे—फिर मौत आ जाने के बाद हमने तुमको फिर से जिंदा कर दिया ताकि एहसान मानो। और हमने बादल का तुम पर साया किए रखा और तुम्हारे लिए मनो-सलवा उतारते रहे—कि जो पाकीजा चीजें हमने तुमको अता फरमाई हैं उनको खाओ-पियो—मगर तुम्हारे बुजुर्गों ने उन नेमतों की कुछ कदर ना जानी और वो हमारा कुछ नहीं बिगाड़ते थे, बल्कि अपना ही नुकसान करते थे।
और जब हमने उनसे कहा कि उस गांव में दाखिल हो जाओ और उसमें जहां से चाहो खूब खाओ-पियो, और देखना—दरवाजे में दाखिल होना सजदा करते हुए—और “हित्ता” कहना; हम तुम्हारे गुनाह माफ कर देंगे और नेकी करने वालों को और ज्यादा देंगे। तो जो जालिम थे उन्होंने उस लफ्ज़ को जिसका उनको हुक्म दिया था—बदलकर उसकी जगह और लफ्ज़ कहना शुरू किया; बस हमने उन जालिमों पर आसमान से अज़ाब नाज़िल किया, क्योंकि वे नाफरमानियां करते थे।
और जब मूसा ने अपनी कौम के लिए हमसे पानी मांगा—तो हमने कहा कि अपनी लाठी पत्थर पर मारो—उन्होंने लाठी मारी, तो उसमें से बारह चश्मे फूट निकले और तमाम लोगों ने अपना-अपना घाट मालूम करके पानी पी लिया। हमने हुक्म दिया कि अल्लाह की अता फरमाई हुई रोज़ी खाओ और पियो—और जमीन में फसाद ना करते फिरना।
और जब तुमने कहा: मूसा! हमसे एक ही खाने पर सब्र नहीं हो सकता—तो अपने परवरदिगार से दुआ कीजिए कि तरकारी, ककड़ी, गेहूं, मसूर और प्याज वगैरह—जो नबात जमीन से उगती हैं—हमारे लिए पैदा कर दे। उन्होंने कहा: उम्दा चीजें छोड़कर उनके बदले नाकिस चीजें क्यों चाहते हो? अगर यही चीजें मतलूब हैं तो किसी शहर में जा उतरो—वहां जो मांगते हो मिल जाएगा। और आख़िरकार जिल्लत, रुसवाई और मोहताजी और बे-नवाई उनसे चिमटा दी गई और वो अल्लाह के ग़ज़ब में गिरफ्तार हो गए—यह इसलिए कि वो अल्लाह की आयतों से इंकार करते थे और उसके नबियों को नाहक कत्ल कर देते थे; यानी इसलिए कि नाफरमानी करते और हद से बढ़ जाते थे।
जो लोग मुसलमान हैं या यहूदी या ईसाई या सितारा-परस्त—यानी कोई शख्स किसी भी कौम-मज़हब का हो—जो अल्लाह और रोज़-ए-कयामत पर ईमान लाएगा और अमल-ए-नेक करेगा—तो ऐसे लोगों को उनके आमाल का सिला अल्लाह के यहां मिलेगा और कयामत के दिन उनको ना किसी तरह का खौफ होगा और ना वो ग़मनाक होंगे।
और जब हमने तुमसे अहद कर लिया और कोहे-तूर को तुम पर उठा खड़ा किया और हुक्म दिया कि जो किताब हमने तुमको दी है उसको जोर-ग़ौर से पकड़े रहो और जो उसमें लिखा है उसे याद रखो ताकि अज़ाब से महफूज़ रहो—फिर तुम उसके बाद अहद से फिर गए; सो अगर तुम पर अल्लाह का फज़्ल और उसकी मेहरबानी ना होती, तो तुम खसारे में पड़ गए होते।
और तुम उन लोगों को खूब जानते हो जो तुम में से हफ्ते के दिन मछली का शिकार करने में हद से तजावुज कर गए थे—तो हमने उनसे कहा कि: “जलील-खार बंदर हो जाओ।” और इस किस्से को उस वक्त के लोगों के लिए—और जो उनके बाद आने वाले थे—इबरत और परहेजगारों के लिए नसीहत बना दिया।
और जब मूसा ने अपनी कौम के लोगों से कहा: अल्लाह तुमको हुक्म देता है कि एक बैल ज़बह करो। वो बोले: क्या तुम हमसे हंसी करते हो? मूसा ने कहा: मैं अल्लाह की पनाह मांगता हूं कि नादान बनूं। उन्होंने कहा: अपने परवरदिगार से इल्तजा कीजिए कि वो हमें यह बताएं कि वो बैल किस तरह का हो। मूसा ने कहा: परवरदिगार फरमाता है कि वह बैल ना तो बूढ़ा हो और ना बछड़ा—बल्कि इनके दरमियान यानी जवान हो—सो जैसा तुमको हुक्म दिया गया है वैसा करो। उन्होंने कहा: अपने परवरदिगार से दरख्वास्त कीजिए कि हमको यह भी बता दे कि उसका रंग कैसा हो। मूसा ने कहा: परवरदिगार फरमाता है कि उसका रंग गहरा ज़र्द हो—कि देखने वालों के दिल को खुश कर देता हो। उन्होंने कहा: अब के परवरदिगार से फिर दरख्वास्त कीजिए कि हमको बता दे कि वह और किस-किस तरह का हो—क्योंकि बहुत से बैल हमें एक-दूसरे के मुशाबिह मालूम होते हैं—और अल्लाह ने चाहा तो हमें ठीक बात मालूम हो जाएगी। मूसा ने कहा: अल्लाह फरमाता है कि वह बैल काम में लगा हुआ ना हो—ना तो जमीन जोतता हो और ना खेती को पानी देता हो—बे-ऐब हो; उसमें किसी तरह का दाग ना हो। कहने लगे: अब तुमने सब बातें दुरुस्त बता दीं; गरज बड़ी मुश्किल से उन्होंने उस बैल को ज़बह किया—जबकि वो ऐसा करने वाले लगते ना थे।
और जब तुमने एक शख्स को कत्ल किया तो उसमें आपस में झगड़ने लगे—हालांकि जो बात तुम छुपा रहे थे—अल्लाह उसको जाहिर करने वाला था—चुनांचे हमने कहा कि उस बैल का कोई सा टुकड़ा मकतूल को मारो—इस तरह अल्लाह मुर्दों को जिंदा करता है और तुमको अपनी कुदरत की निशानियां दिखाता है ताकि तुम समझो।
फिर उसके बाद तुम्हारे दिल सख्त हो गए—गोया वे पत्थर हैं या उनसे भी ज्यादा सख्त। और पत्थर तो बाज ऐसे होते हैं कि उनमें से चश्मे फूट निकलते हैं; और बाज ऐसे होते हैं कि फट जाते हैं और उनमें से पानी निकलने लगता है; और बाज ऐसे होते हैं कि अल्लाह के खौफ से गिर पड़ते हैं। और अल्लाह तुम्हारे करतूतों से बेखबर नहीं।
मोमिनो! क्या तुम उम्मीद रखते हो कि ये लोग तुम्हारे दीन के क़ायल हो जाएंगे? हालांकि इनमें से कुछ लोग कलामुल्लाह—यानी तौरात—को सुनते, फिर उसके समझ लेने के बाद उसको जानबूझकर बदल देते रहे हैं। और ये लोग जब मोमिनों से मिलते हैं तो कहते हैं: हम ईमान ले आए हैं; और जब तन्हाई में एक-दूसरे से मिलते हैं तो कहते हैं: जो बात अल्लाह ने तुम पर जाहिर फरमाई है—वो तुम उनको इसलिए बता देते हो कि कयामत के दिन उसी के हवाले से तुम्हारे परवरदिगार के सामने तुमको इल्जाम दें? क्या तुम समझते नहीं? क्या ये लोग यह नहीं जानते कि जो कुछ ये छुपाते और जो कुछ जाहिर करते हैं—अल्लाह को सब मालूम है।
और बाज उनमें अनपढ़ हैं—जो अपनी आरजूओं के सिवा अल्लाह की किताब से वाकिफ ही नहीं—और वो सिर्फ अटकल से काम लेते हैं। सो उन लोगों पर अफसोस है जो अपने हाथ से किताब लिखते हैं और कहते ये हैं कि यह अल्लाह के पास से आई है ताकि उसके एवज़ थोड़ी-सी कीमत—यानी दुनियावी मुनाफ़त—हासिल करें; सो उन पर अफसोस है—इसलिए कि बे-असल बातें अपने हाथ से लिखते हैं; और फिर उन पर अफसोस है—इसलिए कि ऐसे काम करते हैं।
और कहते हैं: दोजख की आग हमें चंद रोज़ के सिवा छू ही नहीं सकेगी। इनसे पूछो: क्या तुमने अल्लाह से इकरार ले रखा है कि अल्लाह अपने इकरार के खिलाफ नहीं करेगा? या तुम अल्लाह के बारे में ऐसी बातें कहते हो जिनका तुम्हें मुतलक इल्म नहीं? हां—क्यों नहीं! जो बुरे काम करे और जिसके गुनाह हर तरफ से उसको घेर लें—तो ऐसे लोग दोजख में जाने वाले हैं और वो हमेशा उसमें जलते रहेंगे; और जो ईमान लाएं और नेक काम करें—वो जन्नत के मालिक होंगे और हमेशा उसमें ऐश करते रहेंगे।
और जब हमने बनी-इस्राईल से अहद लिया कि—अल्लाह के सिवा किसी की इबादत ना करना—और मां-बाप, रिश्तेदारों, यतीमों और मोहताजों के साथ भलाई करते रहना—और लोगों से अच्छी बातें कहना—और नमाज पढ़ते और जकात देते रहना—तो चंद आदमियों के सिवा तुम सब उस अहद से मुंह फेर कर पलट गए।
और जब हमने तुमसे अहद लिया कि—आपस में खून ना करना और अपनों को उनके वतन से ना निकालना—तो तुमने इकरार कर लिया और तुम इस बात को मानते भी हो; फिर तुम वही हो कि अपनों को कत्ल भी कर देते हो और अपने में से बाज लोगों पर गुनाह और जुल्म से चढ़ाई करके उन्हें वतन से निकाल भी देते हो; और अगर वे तुम्हारे पास कैद होकर आएं तो बदला देकर उनको छुड़ा भी लेते हो—हालांकि उनका निकाल देना ही तुम पर हराम था। यह क्या बात है कि तुम किताबुल्लाह के बाज अहकाम को तो मानते हो और बाज से इंकार कर देते हो? तो जो तुम में से ऐसी हरकत करें—उनकी सजा इसके सिवा और क्या हो सकती है कि दुनिया की जिंदगी में तो रुसवाई हो और कयामत के दिन सख्त से सख्त अज़ाब में डाल दिए जाएं; और जो काम तुम करते हो—अल्लाह उनसे गाफिल नहीं।
यह वो लोग हैं जिन्होंने आखिरत के बदले दुनिया की जिंदगी खरीदी; सो ना तो उनसे अज़ाब ही हल्का किया जाएगा और ना उनको किसी और तरह की मदद मिलेगी।
और हमने मूसा को किताब इनायत की और उनके पीछे यके-बाद-दीगर पैगंबर भेजते रहे; और ईसा इब्ने मरियम को खुले निशानात बख्शे और रूह-ए-कुद्स—यानी जिब्रईल—से उनको मदद दी। तो क्या ऐसा है कि जब कोई पैगंबर तुम्हारे पास ऐसी बातें लेकर आए जिनको तुम्हारा जी नहीं चाहता—तो तुम सरकश हो जाते रहे—और एक गिरोह-ए-अनबिया को तो झुठलाते रहे और एक गिरोह को कत्ल करते रहे।
और कहते हैं: हमारे दिलों पर पर्दे हैं—नहीं, बल्कि अल्लाह ने उनके कुफ्र के सबब उन पर लानत कर रखी है—बस, ये थोड़े ही ईमान लाते हैं।
और जब अल्लाह की तरफ से उनके पास किताब आई—जो उनकी आसमानी किताब की भी तस्दीक करती है—और वे पहले हमेशा काफिरों पर फतह मांगा करते थे; फिर जिस चीज़ को वे खूब पहचानते थे—जब उनके पास आ पहुंची—तो उससे मुंकर हो गए—बस, काफिरों पर अल्लाह की लानत।
जिस चीज़ के बदले उन्होंने अपने आपको बेच डाला—वो बहुत बुरी है; यानी इस जलन से कि अल्लाह अपने बंदों में से जिस पर चाहता है—अपनी मेहरबानी से नाज़िल फरमाता है—अल्लाह की नाज़िल की हुई किताब से कुफ्र करने लगे, तो वे उसके ग़ज़ब पर ग़ज़ब में मुबतला हो गए—और काफिरों के लिए ज़लील करने वाला अज़ाब है।
और जब उनसे कहा जाता है: जो किताब अल्लाह ने अब नाज़िल फरमाई है—उसको मानो—तो कहते हैं: जो किताब हम पर पहले नाजिल हो चुकी है, हम तो उसी को मानते हैं—यानी यह उसके सिवा और किताब को नहीं मानते—हालांकि वह सरासर सच्ची है और जो उनकी आसमानी किताब है—उसकी भी तस्दीक करती है। इनसे कह दो: अगर तुम साहिब-ए-ईमान होते, तो अल्लाह के पैगंबरों को पहले ही क्यों कत्ल किया करते थे?
और मूसा तुम्हारे पास खुले हुए मौजिज़ात लेकर आए—फिर तुम उनके कोहे-तूर पर जाने के बाद बछड़े को माबूद बना बैठे और तुम अपने ही हक में जुल्म करते थे।
और जब हमने तुम लोगों से पुख्ता अहद लिया और कोहे-तूर को तुम पर उठा खड़ा किया और हुक्म दिया कि जो किताब हमने तुमको दी है उसको जोर से पकड़ो और जो तुम्हें हुक्म होता है उसको सुनो—तो वो जो तुम्हारे बड़े थे—कहने लगे: हमने सुन तो लिया, लेकिन मानते नहीं—और उनके कुफ्र के सबब बछड़ा गोया उनके दिलों में रच गया था। ऐ पैगंबर! उनसे कह दो: अगर तुम मोमिन हो—तो तुम्हारा ईमान तुमको बुरी बात बताता है?
कह दो: अगर आखिरत का घर—अल्लाह के नजदीक—सिर्फ तुम्हारे ही लिए महसूस है और लोगों यानी मुसलमानों के लिए नहीं—तो अगर सच्चे हो तो मौत की आरजू करो। और उन आमाल की वजह से जो इनके हाथ आगे भेज चुके हैं—ये कभी उसकी आरजू नहीं करेंगे—और अल्लाह जालिमों से खूब वाकिफ है।
और इनको तुम और लोगों से ज्यादा जिंदगी के हरीस देखोगे—यहां तक कि मुशरिकों से भी बढ़कर—इनमें से हर एक यही ख्वाहिश करता है कि काश, वो हजार बरस जीता रहे; मगर इतनी लंबी उम्र उसको मिल भी जाए—तो उसे अज़ाब से तो नहीं छुड़ा सकती—और जो काम ये करते हैं—अल्लाह उनको देख रहा है।
कह दो: जो शख्स जिब्रईल का दुश्मन हो—उसे गुस्से में मर जाना चाहिए—क्योंकि उसने तो यह किताब अल्लाह के हुक्म से तुम्हारे दिल पर नाजिल की है—जो पहली किताबों की तस्दीक करती है—और ईमान वालों के लिए हिदायत और नसीहत है। जो शख्स अल्लाह का और उसके फरिश्तों का और उसके पैगंबरों का और जिब्रईल और मीकाईल का दुश्मन हो—तो ऐसे काफिरों का अल्लाह दुश्मन है।
और हमने तुम्हारे पास सुलझी हुई आयतें इरसाल फरमाई हैं—और इनसे इंकार वही करते हैं जो बदकिरदार हैं। इन लोगों ने जब-जब अल्लाह से कोई अहद किया—तो उनमें से एक फ़रीक ने उसको किसी चीज़ की तरह फेंक दिया—हकीकत यह है कि इनमें अक्सर बे-ईमान हैं।
और जब उनके पास अल्लाह की तरफ से पैगंबर-ए-आख़िर—मुहम्मद ﷺ—आए और वह उनकी आसमानी किताब की तस्दीक भी करते हैं; तो जिन लोगों को किताब दी गई थी—उनमें से एक जमात ने अल्लाह की किताब को पीठ पीछे फेंक दिया—गोया वो जानते ही नहीं।
और उन चीज़ों के पीछे लग गए—जो सुलेमान के अहद-ए-सल्तनत में शयातीन पढ़ा करते थे; और सुलेमान ने मुतलक कुफ्र की बात नहीं की—बल्कि शैतान ही कुफ्र करते थे—कि लोगों को जादू सिखाते थे। और वो—यानी बनी-इस्राईल—उन बातों के भी पीछे लग गए—जो शहर बाबिल में दो फरिश्तों—यानी हारूत और मारूत—पर उतारी गई थीं; और वो दोनों किसी को कुछ नहीं सिखाते थे—जब तक यह ना कह देते कि: “हम तो जरिया-ए-आज़माइश हैं—तुम कुफ्र में ना पड़ो।” गरज, लोग उनसे वो चीजें सीखते—जिससे मियां-बीवी में जुदाई डालते; और अल्लाह के हुक्म के सिवा वे उस चीज़ से किसी का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते थे। और कुछ ऐसे मंतर सीखते—जो उन्हें नुकसान ही पहुंचाते और फायदा कुछ ना देते। और वो जानते थे कि जो शख्स ऐसी चीज़ों—यानी जादू-मंतर वगैरह—का खरीदार होगा—उसका आखिरत में कोई हिस्सा नहीं। और जिस चीज़ के एवज़ उन्होंने अपनी जानों को बेच डाला—वो बुरी थी—क्या अच्छा होता जो वो इस बात को जानते!
और अगर वो ईमान लाते और परहेजगारी करते—तो अल्लाह के यहां से बहुत अच्छा सिला मिलता—क्या अच्छा होता जो वो इससे वाकिफ होते।
ऐ अहले-ईमान! गुफ्तगू के वक्त पैगंबर ﷺ से “राअिना” ना कहा करो—“उनज़रना” कहा करो—और खूब सुन रखो—और काफिरों के लिए दुख देने वाला अज़ाब है। जो लोग काफिर हैं—अहले-किताब या मुशरिक—वो इस बात को पसंद नहीं करते कि तुम लोगों पर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से खैर-ओ-बरकत नाजिल हो—और अल्लाह तो जिसको चाहता है—अपनी रहमत के साथ खास कर लेता है—और अल्लाह बड़े फ़ज़्ल का मालिक है।
हम जिस आयत को मंसूख कर देते या उसे फरामोश करा देते हैं—तो उससे बेहतर या वैसी ही और आयत भेज देते हैं—क्या तुम नहीं जानते कि अल्लाह हर बात पर कादिर है? क्या तुम्हें मालूम नहीं कि आसमानों और जमीन की सल्तनत अल्लाह ही की है—और अल्लाह के सिवा तुम्हारा कोई दोस्त और मददगार नहीं।
मुसलमानो! क्या तुम यह चाहते हो कि अपने पैगंबर ﷺ से उसी तरह के सवाल करो—जिस तरह के सवाल पहले मूसा से किए गए थे? और जिस शख्स ने ईमान छोड़कर उसके बदले कुफ्र लिया—तो यकीनन वो सीधे रास्ते से भटक गया। बहुत-से अहले-किताब अपने दिल की जलन से यह चाहते हैं कि ईमान लाने के बाद तुमको फिर काफिर बना दें—हालांकि उन पर हक जाहिर हो चुका है—तो तुम माफ कर दो और दरगुज़र करो—यहां तक कि अल्लाह अपना दूसरा हुक्म भेजे—बेशक अल्लाह हर बात पर कादिर है।
और नमाज अदा करते रहो और जकात देते रहो; और जो भलाई अपने लिए आगे भेज रखोगे—उसे अल्लाह के यहां पा लोगे—कुछ शक नहीं कि अल्लाह तुम्हारे सब कामों को देख रहा है।
और यहूदी और ईसाई कहते हैं कि यहूदियों और ईसाइयों के सिवा कोई बहिश्त में नहीं जाने का—ये इन लोगों के ख्यालात-ए-बातिल हैं। ऐ पैगंबर! इनसे कह दो: अगर सच्चे हो तो दलील पेश करो। हां—क्यों नहीं! जो शख्स अल्लाह के आगे गर्दन झुका दे—यानी ईमान ले आए—और वो नेककार भी हो—तो उसका सिला उसके परवरदिगार के पास है; और ऐसे लोगों को कयामत के दिन ना किसी तरह का खौफ होगा और ना वो ग़मनाक होंगे।
और यहूदी कहते हैं कि ईसाई रास्ते पर नहीं और ईसाई कहते हैं कि यहूदी रास्ते पर नहीं—हालांकि वो किताब-ए-इलाही पढ़ते हैं। इसी तरह बिल्कुल इन्हीं की-सी बात वो लोग कहते हैं जो कुछ नहीं जानते—यानी मुशरिक—तो जिस बात में ये लोग इख्तिलाफ कर रहे हैं—अल्लाह कयामत के दिन उसका इनमें फैसला कर देगा।
और उससे बढ़कर जालिम कौन—जो अल्लाह की मस्जिदों में अल्लाह के नाम का ज़िक्र किए जाने को मना करे और उनकी वीरानी के लिए कोशिश करे? इन लोगों को कुछ हक नहीं कि इन मस्जिदों में दाखिल हों—मगर डरते हुए; इनके लिए दुनिया में रुसवाई है और आखिरत में बड़ा अज़ाब। और मशरिक और मग़रिब—सब अल्लाह ही का है—तो जिधर भी तुम रुख करो—उधर ही अल्लाह की ज़ात है—बेशक अल्लाह साहिब-ए-वुसअत है, बाक़बर है।
और ये लोग इस बात के क़ायल हैं कि अल्लाह औलाद रखता है—नहीं, वो पाक है—बल्कि जो कुछ आसमानों और जमीन में है—सब उसी का है और सब उसके फरमाबरदार हैं। वही आसमान और जमीन का पैदा करने वाला है—और जब कोई काम करना चाहता है—तो उसको इरशाद फरमा देता है: “हो जाओ”—तो वह हो जाता है।
और जो लोग कुछ नहीं जानते—यानी मुशरिक—वो कहते हैं कि: अल्लाह हमसे कलाम क्यों नहीं करता? या हमारे पास कोई निशानी क्यों नहीं आती? इसी तरह जो लोग इनसे पहले थे—वो भी इन्हीं की-सी बातें किया करते थे; इन लोगों के दिल आपस में मिलते-जुलते हैं—जो लोग साहिब-ए-यक़ीन हैं—उनके समझाने के लिए हमने निशानियां बयान कर दी हैं।
ऐ पैगंबर! हमने तुमको सच्चाई के साथ खुशखबरी सुनाने वाला और डराने वाला बनाकर भेजा है—और अहले-दोजख के बारे में तुमसे कुछ पूछ न होगी।
और तुमसे ना तो यहूदी कभी खुश होंगे और ना ईसाई—यहां तक कि उनके मजहब की पैरवी इख्तियार कर लो। इनसे कह दो: अल्लाह की हिदायत—यानी दीन-ए-इस्लाम—ही हिदायत है। और ऐ पैगंबर! अगर तुम—अपने पास इल्म, यानी वही-ए-इलाही के आ जाने पर भी—इनकी ख्वाहिशों पर चलोगे—तो तुमको अल्लाह की पकड़ से बचाने वाला ना कोई दोस्त होगा ना कोई मददगार।
जिन लोगों को हमने किताब इनायत की है—वह उसको ऐसा पढ़ते हैं—जैसा उसके पढ़ने का हक है—यही लोग उस पर ईमान रखते हैं और जो उसको नहीं मानते—वही खसारा पाने वाले हैं।
ऐ बनी-इस्राईल! मेरे वो एहसान याद करो जो मैंने तुम पर किए—और यह कि मैंने तुमको अहले-आलम पर फज़ीलत बख्शी। और उस दिन से डरो जब कोई शख्स किसी शख्स के कुछ काम ना आए, और ना उससे बदला कबूल किया जाए, और ना उसको किसी की सिफारिश कुछ फायदा दे, और ना लोगों को किसी और तरह की मदद मिल सके।
और जब इब्राहीम की—उसके परवरदिगार ने—चंद बातों में आजमाइश की—तो वो उनमें पूरे उतरे; फरमाया: मैं तुमको लोगों का पेशवा बनाऊंगा। उन्होंने कहा: परवरदिगार! मेरी औलाद में से भी (पेशवा) बनाइयो। फरमाया: मेरा कौल-ओ-क़रार जालिमों के लिए नहीं हुआ करता।
और जब हमने ख़ाना-ए-काबा को लोगों के लिए जमा होने और अमन पाने की जगह मुक़र्रर किया—और हुक्म दिया कि जिस मकाम पर इब्राहीम खड़े होते थे—उसे नमाज की जगह बना लो—और इब्राहीम और इस्माईल को हुक्म भेजा कि तवाफ करने वालों और एतकाफ करने वालों और रुकू करने वालों और सजदा करने वालों के लिए मेरे घर को पाक-साफ रखा करो।
और जब इब्राहीम ने दुआ की कि: ऐ परवरदिगार! इस जगह को अमन का शहर बना और इसके रहने वालों में से—जो अल्लाह पर और रोज़-ए-आखिर पर ईमान लाए—उनके खाने को मेवे अता फरमा। तो अल्लाह ने फरमाया: जो काफिर होगा—मैं उसको भी कुछ मुद्दत तक सामान-ए-जिंदगी दूंगा—मगर फिर उसको अज़ाब-ए-दोजख के भुगतने के लिए मजबूर कर दूंगा—और वो बुरी जगह है।
और जब इब्राहीम और इस्माईल बैतुल्लाह की बुनियादें ऊंची कर रहे थे—तो दुआ किए जाते थे: ऐ हमारे परवरदिगार! हमसे ये खिदमत कुबूल फरमा—बेशक तू सुनने वाला, जानने वाला है। ऐ परवरदिगार! हमको अपना फरमाबरदार बनाए रख और हमारी औलाद में से भी एक गिरोह को अपना फरमाबरदार बनाइयो। और परवरदिगार! हमें हमारे तरीके-ए-इबादत बता और हमारे हाल पर रहमत के साथ तवज्जो फरमा—बेशक तू ही तवज्जो फरमाने वाला है, मेहरबान है। ऐ परवरदिगार! इन लोगों में इन्हीं में से एक पैगंबर मबूस कीजिए—जो इनको तेरी आयतें पढ़-पढ़कर सुनाया करे और किताब और दानाई सिखाया करे और इनके दिलों को पाक-साफ किया करे—बेशक तू ग़ालिब है, साहिब-ए-हिकमत है।
और इब्राहीम के दीन से कौन रूगरदानी कर सकता है—बज़्ज़ उसके जो निहायत नादान हो? और हमने उनको दुनिया में भी मुंतखब किया था—और आखिरत में भी वह नेक लोगों में होंगे। जब उनसे उनके परवरदिगार ने फरमाया: मेरे फरमाबरदार हो जाओ—तो उन्होंने अर्ज़ की: मैं रब्बुल आलमीन का फरमाबरदार हो गया।
और इब्राहीम ने अपने बेटों को इसी बात की वसीयत की—और याकूब ने भी अपने फरज़ंदों से यही कहा: ऐ मेरे बेटों! अल्लाह ने तुम्हारे लिए यही दीन पसंद फरमाया है—तो मरना तो मुसलमान ही मरना।
जिस वक्त याकूब वफात पाने लगे—तो क्या तुम उस वक्त मौजूद थे? जब उन्होंने अपने बेटों से पूछा: मेरे बाद तुम किसकी इबादत करोगे? तो उन्होंने कहा: आपके माबूद और आपके बाप-दादा इब्राहीम, इस्माईल और इसहाक के माबूद की इबादत करेंगे—जो माबूद-ए-वाहिद है—और हम उसी के हुक्मबरदार हैं।
यह जमात गुज़र चुकी—इनको इनके आमाल का बदला मिलेगा और तुमको तुम्हारे आमाल का—और जो अमल वो करते थे—उनकी पूछ तुमसे नहीं होगी।
और यहूदी और ईसाई कहते हैं कि: यहूदी या ईसाई हो जाओ—तो सीधे रास्ते लग जाओगे। ऐ पैगंबर! इनसे कह दो: नहीं—बल्कि हम दीन-ए-इब्राहीम इख्तियार किए हुए हैं—जो एक अल्लाह के हो रहे थे—और मुशरिकों में से ना थे।
मुसलमानो! कहो कि: हम अल्लाह पर ईमान लाए—और जो किताब हम पर उतरी—उस पर—और जो सह़ीफ़े इब्राहीम, इस्माईल, इसहाक और याकूब और उनकी औलाद पर नाज़िल हुए—उन पर—और जो किताबें मूसा और ईसा को अता हुईं—उन पर—और जो दूसरे पैगंबरों को उनके परवरदिगार की तरफ से मिलीं—उन सब पर ईमान लाए। हम उन पैगंबरों में से किसी में कुछ फर्क नहीं करते—और हम उसी माबूद-ए-वाहिद के फरमाबरदार हैं।
फिर अगर ये लोग भी उसी तरह ईमान ले आएं—जिस तरह तुम ईमान ले आए हो—तो हिदायतयाब हो जाएंगे; और अगर मुंह फेर लें और न मानें—तो वो तुम्हारे मुखालिफ हैं—और उनके मुकाबले में तुम्हें अल्लाह काफी है—और वो सुनने वाला, जानने वाला है।
कह दो: हमने अल्लाह का रंग इख्तियार कर लिया है—और अल्लाह से बेहतर रंग किसका हो सकता है? और हम उसी की इबादत करने वाले हैं।
उनसे कहो: क्या तुम अल्लाह के बारे में हमसे झगड़ते हो—हालांकि वही हमारा और तुम्हारा परवरदिगार है—और हमको हमारे आमाल का बदला मिलेगा और तुमको तुम्हारे आमाल का—और हम खास उसी की इबादत करने वाले हैं।
ऐ यहूदो-नसारा! क्या तुम इस बात के क़ायल हो कि इब्राहीम, इस्माईल, इसहाक, याकूब और उनकी औलाद—यहूदी या ईसाई थे? ऐ पैगंबर! इनसे कहो: भला तुम ज्यादा जानते हो या अल्लाह? और उससे बढ़कर जालिम कौन—जो अल्लाह की शहादत को—जो उसके पास किताब में मौजूद है—छुपाए; और जो कुछ तुम लोग कर रहे हो—अल्लाह उससे ग़ाफिल नहीं। ये अंबिया की जमात गुज़र चुकी—इनको वो मिलेगा जो इन्होंने किया—और तुमको वो—जो तुमने किया—और जो अमल वे करते थे—उनकी पूछ तुमसे नहीं होगी।
